आब्रू थी उनके हाथों , की परदा रूबरू था
नजरे भी ना उठा के देखी उन्होने
की अपनी तेज़ चलती सासों से बे - परदा कर दीया
उनकी यह अदा कुछ इस कदर भा गई हमे
दीळ ने गुस्ताखी करने की हमे भी इजाज़त दे दी
की उँगलियाँ बढ़ा कर हमने भी उन्हे छू लीया
रेशम सी छुअन और हुस्न का जादू तो चलना ही था
उनकी नज़रे उठी और आ गीरी हमपर कुछ इस तरह
की खीच कर हमारी कलाई उन्होने अपना दामन भर लीया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment