Wednesday, March 26, 2008

ऐतबार

आब्रू थी उनके हाथों , की परदा रूबरू था
नजरे भी ना उठा के देखी उन्होने
की अपनी तेज़ चलती सासों से बे - परदा कर दीया


उनकी यह अदा कुछ इस कदर भा गई हमे
दीळ ने गुस्ताखी करने की हमे भी इजाज़त दे दी
की उँगलियाँ बढ़ा कर हमने भी उन्हे छू लीया


रेशम सी छुअन और हुस्न का जादू तो चलना ही था
उनकी नज़रे उठी और गीरी हमपर कुछ इस तरह
की खीच कर हमारी कलाई उन्होने अपना दामन भर लीया

Saturday, February 16, 2008

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उनकी नज़रों मे अपना अक्स कुछ इस तरह नज़र आने लगा

मेरे सीने से दिल बस निकल कर जाने लगा

उनकी बाहों मे जाकर हम टूट गए कुछ इस तरह

की मोहब्बत करने के दिल सौ बहाने बनाने लगा

Tuesday, January 15, 2008

......

उन्होने आज वो काम कर दिख लाया
जो इतने सालों तक हमसे ना हो पाया
कुछ कहना ना था उनका ज़रूरी
की उनकी एक नज़र से ही , वो मोती सीप से निकल आया

खारे पानी से पलखे भीगी बहुत दिनों बाद
अपने दर्दों का अहसास हुआ बहुत दिनों बाद
शर्म की मुस्कुराहत से होठं खिल उठे हमारे
की उनके एक स्पर्श से ही , आवाज़ मिली इस पुतले को बहुत दिनों बाद

प्यार से दामन यूं भर दिया है उन्होने मेरा
खुशियों का दिल मे हो गया है जैसे डेरा
अँधेरी सी ज़िंदगी मे गुलाबी रंग फिर खिल उठा
की मेरी रात को आज फिर मिल गया है सवेरा