Thursday, September 13, 2007

तुम्हारे लिए ..

दिल की घुटन मे बंद एक आवाज़ है मेरी
कोई सुन ले इसे तो मैं करार पाऊँ ................
इन बंद होंठों को जुबां अगर मिल जाये
तो मैं भी शब्दों की बाहार पाऊँ ..........
लोग कहते है मुझसे की आँखें ख़ूबसूरत है तुम्हारी
इन्हे अगर कोई पढ़ ले तो मैं भी सवर जाऊं ......................
बाहें फैलाये खडी हूँ मैं भी दर पर अपने
की उसकी बाँहों मे जा के मैं भी बिखर जाऊं ..........

कभी कहा नही

कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

इश्क़ को अपने हमने आँखों मे छुपा कर रखा
पलकों की चादर से हमेशा उसे बचा कर रखा
निगाहों को भी ना उनसे गुफ्तगू करने दी
की हमने ........
कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

वो हमे अपना जिगरी दोस्त कहते थे हमेशा
अपनी हर बात वोह हमसे कहते थे हमेशा
पर अपनी ज़ुबां पर कभी आने ना दिया
की हमने ...............
कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

एक दिन ऐसा आया जब उनकी डोली को हमने विदा किया
करते और क्या भला हमने "जिगरी दोस्त" का फ़र्ज़ अदा किया
जिगर मे दर्द की एक हूक उठी थी हमारे
की तब भी हमने .............
कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

आज एक और ऐसा दिन जिन्दगी मे फिर आया है
कंधे पर उनका ही जनाज़ा हमने उठाया है
उनके आखरी ख़त को पढ़ कर अब जीं ना पिएंगे हम
की उन्होने भी लिखा था ...........
कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

ज़ख्म

दिल की हालत है क्या यह किन लफ़्ज़ों मे करें हम बयां
की अरमानों की अर्थी उठी है आज किसी सजी डोली की तरह ..........................

सजाया तो गया है इसको भी फूलों से ही
क्यों लग रही है इनकी चुवन हमे काटों की तरह ..............

संभलना ऐ दुनिया वालो की जाते - जाते भी ना हम कहीँ ज़ख़्मी हो जाएँ
की और भी ज़ख्म अपने कंधे पे लिए जा रहें है हम किसी इलज़ाम की तरह ...................

अब एक और दाग ना सह सकेंगे हम अपने दमन मे
की जीं ना सके इस दुनिया मे हम बनके आम इंसानों की तरह ...............

वोह रात

वोह कुछ ऐसी पहली मुलाक़ात थी
एक बड़ी ही हसीन रात थी ..........

नज़रों से लिखी थी एक कहानी
आसूं बहे थे बनकर जब पानी
हूठों से छुआ था उनके हूठों ने
महक उठी थी मैं बनकर रात की रानी

वोह कुछ ऐसी पहली मुलाक़ात थी
एक बड़ी हसीन रात थी ...........

उस रात के आँचल में
हम समां गए
वो अपनी बाँहों की चादर उडा गए
आज होटों पर दिल की हर बात थी

वो कुछ ऐसी पहली मुलाक़ात थी
एक बड़ी ही हसीन रात थी .............

वोह दुल्हन बनी .....

होश थिकनाये नही रह गए है जब से
गुजरे कल मे हमने उसे दुल्हन बना देखा ....
क्या किस्मत पाई है यारो आपना दिल देके भी
नही है मेरे हाथों मे उसके दिल की रेखा ......

टूट कर चक्ना चूर हूए है मेरे सपने
रो पडे है आज मेरे साथ यह मेघा .........
जाते हूए देख रहा हूँ घर की छत से
तस्सली मिली जब सनम ने भी बस एक बार ...........आखरी बार ....मुझे पलट के देखा

जिन्दगी की जिन्दगी

पेडों की छाओं सी जब दिखती है जिन्दगी
फिर सूरज की धूप सी क्यों जलती है जिन्दगी .....
जब थमते हुये कदम सी लगती है जिन्दगी
फिर रूक कर क्यों चलने लगती है जिन्दगी ......
यूं तो फूलों के रंग से भरी होती है जिन्दगी
फिर यह क्यों काँटों सी लगने लगती है जिन्दगी .....
थक कर जब उस से पूछा की जवाब इसका दे ए जिन्दगी
तो वोह मुस्कुरा कर बोली यही जानने के लिए ही .............
आज तक जीं रही है यह जिन्दगी ............

फिर एक बार

चांदनी रात मे जब तारे चमकने लगे
हम फिर से वो कविता लिखने लगे

जिसमे तुम्हारा ज़िक्र बार बार आया करता है
क्या करें की यह दिल अब भी तुम्ही पर मरता है

एक बार बस उस चिलमन से झाक कर देख लो मुझे
की जीं भर कर देखना चाहता हूँ आज मैं तुझे

माँ

नैनो मे हमेशा एक आस है तेरे आने की
दिल मे एक तमन्ना है बस तुझे पाने की ...........

जिन्दगी मे दूसरों को देख कर महसूस हुआ
की तू भी कही से मुझे देती होगी दुआ ........

कितनी सारी है जो करनी है तुझसे बातें'
तेरी लोरी के बिना सूनी है मेरी रातें.............

कंधे पर सूने को मन इंतजार कर ता है
झूठ है यह सपना फिर भी दिल ऐतबार कर ता है .......

बिस्तर पर लेट कर तेरा इंतजार करती हूँ
हाँ
माँ मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ ...

ज़यादा नही मांगती तू बस एक बार आजा
वहेम ही सही एक बार माँ मुझे गले लगा जा .....गले लगाजा ........

Tuesday, September 11, 2007

तलाश

ना रोशिनी है , ना सवेरा है
चारों तरफ बस अँधेरा है
तलाश भी करें तो किधर करें
जिन्दगी ने तोड़ कर यूं बेखेरा है.................

उम्मीद उठती है , फिर टूट जाती है
राहें ना कही मंज़िल पाती है
बयां करें तो कैसे करें
दिल मे सिर्फ दर्द का डेरा है ...................

Monday, February 19, 2007

वोह ख़त

रेशमी हाथों से वोह ख़त देते हुये
उसने कहा कि मैं जा रही हूँ ......
सुरमई पलकों पर आश्रू रखते हुये
उसने कहा कि मैं जा रही हूँ ........
ज़ुल्फ़ें तो अब भी उड़ रही थी उसकी पर
उसने कहा कि मैं जा रही हूँ .......
उसके कदम मैं रोक ना सका
क्यूंकि उसने ' कहा कि मैं जा रही हूँ .......
इंतज़ार किया मैंने आखिरी झलक तक उसका
पर उसने कहा मैं जा रही हूँ ......
आज भी उसी एक पल मैं जीं रहा हूँ
जब उसने कहा मैं जा रही हूँ .....
उसकी ज़ुबा कि तरह मैंने ख़त नही खोला अब तक
क्यूंकि उसकी नज़रों ने कहा की मैं जा रही हूँ ..............

खाली सी जिन्दगी

मैं जाने कहा कहा भटकी हूँ
एक रोशिनी की तलाश मे
अब तो सिर्फ कुछ बूंदी ही
रह गए नैनो के खली ग्लास मे
इस तपती धूप मे जल्द ही
यह भी सूख जाये ना
डरती हूँ इस बात से की
कदम कही रूक जाये ना
जानती हूँ की मेरी रोशिनी
की तलाश अभी अधूरी है
पर क्या करूं यह भी
तो मेरी एक मज बूरी है
आज तक जिन्दगी से मैंने
कभी हार नही मानी
इसलिये आज यह मैंने
दिल मे है ठानी
की इस जिन्दगी को अपनी सांसे
छेन ने नही दूँगी
आज इस जिन्दगी का रुख ही
मैं मोड दूँगी
आज यह जिन्दगी खतम करके
सास ओं से पीछा चुरा रही हूँ
अर्ध्वेरम से यह शुरू हुई थी
आज इसमे पुर्न्वेरम लगा रही hoon
.

Thursday, February 15, 2007

पुकार

घर का हर कमरा अब खाली सा लगता है
दिल का हर जस्बा एक आग सा सुलगता है
रोने को जीं करता है लेकिन रो नही सकते
की मेरा दर्द घर के दूसरो से कुछ कम सा लगता है.......

तुम्हारे
लिए इंतज़ार थकता नही है मेरा
तनहाइयों का यहाँ कुछ होने लगा है ऐसा डेरा
की तुम्हारी याद है जो रोके नही रूकती
जाने कब होगा मेरी रातों का सवेरा ........

जब से तुम गए हो परदेस बचा नही यहाँ कुछ
खाली सा आंगन है यहाँ , खाली सी दीवारें कुछ
चुप्पी सी छायी है इस घर मे कुछ ऐसी
की दिल मे दर्द है हर किसी के पर कोई कहता नही कुछ ...........

कुछ और नही चाहिऐ हमे तुम बस जाओ
पथ झड है यहाँ बस मेघा की तरह छा जाओ
की हमारी आखें तरस गई है तुम्हे देखने को
देस पराया छोड़ तुम घर अपने जाओ .........

ग़ज़ल

आज फिर एक ग़ज़ल गा रही हूँ मैं
दर्द दिल के नग्मे सुना रही हूँ मैं
कोशिशें है आज भी जारी की ना भीगे पल्खें
की आज भी उन्ही लम्हों मैं जिन्दगी बिता रही हूँ मैं .......................

एक रोज़ हाथ थम के कहा था तुमने
की जीं ना पऊँगा मैं अब तुम्हारे बिन
सासें यह सारी लिख दी है मैने नाम तुम्हारे
की रहूँगा तेरे संग मैं अब रात दिन

आज फिर एक ग़ज़ल गा रही हूँ मैं
दर्द दिल के नग्मे सुना रही हूँ मैं ...........

"जिन्दगी " के दो दिन साथ गुज़ारे हमने
हर एक कदमो को भी हमने गीना
कब इन बाहों को छोड़ दिया था तुमने
की जीं रही हूँ आज मैं सासों के बिना

आज फिर एक ग़ज़ल गा रही हूँ मैं
दर्द दिल के नग्मे सुना रही हूँ मैं .................


अकेले इन रहो मैं छोड़ के जो गए हो तुम
की तन्हायियाँ घीरे है हमे चारो ओर
दिन कट रहे है हमारे कुछ ऐसे
जाने कब आती है शम्म जाने कब होती है भोर

आज फिर एक ग़ज़ल गा रही हूँ मैं
दर्द दिल के नग्मे सुना रही हूँ मैं .....................

Wednesday, February 14, 2007

हार की जीत

सपनो का सागर थम गया है जिस लम्हे मे आकर
थक गयी हूँ मैं उस शाम मैं जीं कर
कहते है जाम होता है वोह इलाज़ जिसमे कोई दर्द नही
सोचा आज मैं भी देखूं ज़रा इस से पी कर ..........

वोह पल जो खो गएँ है मेरे जाके उन्हे ढूड लाऊँ
आम इंसानों की तरह मैं भी एक सपनो का महल बाना ऊँ
इस शाम के साथ उन सब लम्हों को दूं जला
और फिर इस शाम की वो नयी सुबह बुलाओं .............

होस्लों को समेट चढ़ कर दिखाना है फिर से वोह पर्वत
किसी साथ की ,किसी सहारे की आज मुझको नही जरुरत
ख़त्म कर उस शाम को ,बढ़ना है मुझे आगे
पर हालात से हार मान जाऊं ,मेरी यह नही फितरत , मेरी नही यह फितरत .......