Thursday, February 15, 2007

ग़ज़ल

आज फिर एक ग़ज़ल गा रही हूँ मैं
दर्द दिल के नग्मे सुना रही हूँ मैं
कोशिशें है आज भी जारी की ना भीगे पल्खें
की आज भी उन्ही लम्हों मैं जिन्दगी बिता रही हूँ मैं .......................

एक रोज़ हाथ थम के कहा था तुमने
की जीं ना पऊँगा मैं अब तुम्हारे बिन
सासें यह सारी लिख दी है मैने नाम तुम्हारे
की रहूँगा तेरे संग मैं अब रात दिन

आज फिर एक ग़ज़ल गा रही हूँ मैं
दर्द दिल के नग्मे सुना रही हूँ मैं ...........

"जिन्दगी " के दो दिन साथ गुज़ारे हमने
हर एक कदमो को भी हमने गीना
कब इन बाहों को छोड़ दिया था तुमने
की जीं रही हूँ आज मैं सासों के बिना

आज फिर एक ग़ज़ल गा रही हूँ मैं
दर्द दिल के नग्मे सुना रही हूँ मैं .................


अकेले इन रहो मैं छोड़ के जो गए हो तुम
की तन्हायियाँ घीरे है हमे चारो ओर
दिन कट रहे है हमारे कुछ ऐसे
जाने कब आती है शम्म जाने कब होती है भोर

आज फिर एक ग़ज़ल गा रही हूँ मैं
दर्द दिल के नग्मे सुना रही हूँ मैं .....................

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