Wednesday, February 14, 2007

हार की जीत

सपनो का सागर थम गया है जिस लम्हे मे आकर
थक गयी हूँ मैं उस शाम मैं जीं कर
कहते है जाम होता है वोह इलाज़ जिसमे कोई दर्द नही
सोचा आज मैं भी देखूं ज़रा इस से पी कर ..........

वोह पल जो खो गएँ है मेरे जाके उन्हे ढूड लाऊँ
आम इंसानों की तरह मैं भी एक सपनो का महल बाना ऊँ
इस शाम के साथ उन सब लम्हों को दूं जला
और फिर इस शाम की वो नयी सुबह बुलाओं .............

होस्लों को समेट चढ़ कर दिखाना है फिर से वोह पर्वत
किसी साथ की ,किसी सहारे की आज मुझको नही जरुरत
ख़त्म कर उस शाम को ,बढ़ना है मुझे आगे
पर हालात से हार मान जाऊं ,मेरी यह नही फितरत , मेरी नही यह फितरत .......

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