Monday, February 19, 2007

वोह ख़त

रेशमी हाथों से वोह ख़त देते हुये
उसने कहा कि मैं जा रही हूँ ......
सुरमई पलकों पर आश्रू रखते हुये
उसने कहा कि मैं जा रही हूँ ........
ज़ुल्फ़ें तो अब भी उड़ रही थी उसकी पर
उसने कहा कि मैं जा रही हूँ .......
उसके कदम मैं रोक ना सका
क्यूंकि उसने ' कहा कि मैं जा रही हूँ .......
इंतज़ार किया मैंने आखिरी झलक तक उसका
पर उसने कहा मैं जा रही हूँ ......
आज भी उसी एक पल मैं जीं रहा हूँ
जब उसने कहा मैं जा रही हूँ .....
उसकी ज़ुबा कि तरह मैंने ख़त नही खोला अब तक
क्यूंकि उसकी नज़रों ने कहा की मैं जा रही हूँ ..............

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