Thursday, February 15, 2007

पुकार

घर का हर कमरा अब खाली सा लगता है
दिल का हर जस्बा एक आग सा सुलगता है
रोने को जीं करता है लेकिन रो नही सकते
की मेरा दर्द घर के दूसरो से कुछ कम सा लगता है.......

तुम्हारे
लिए इंतज़ार थकता नही है मेरा
तनहाइयों का यहाँ कुछ होने लगा है ऐसा डेरा
की तुम्हारी याद है जो रोके नही रूकती
जाने कब होगा मेरी रातों का सवेरा ........

जब से तुम गए हो परदेस बचा नही यहाँ कुछ
खाली सा आंगन है यहाँ , खाली सी दीवारें कुछ
चुप्पी सी छायी है इस घर मे कुछ ऐसी
की दिल मे दर्द है हर किसी के पर कोई कहता नही कुछ ...........

कुछ और नही चाहिऐ हमे तुम बस जाओ
पथ झड है यहाँ बस मेघा की तरह छा जाओ
की हमारी आखें तरस गई है तुम्हे देखने को
देस पराया छोड़ तुम घर अपने जाओ .........

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