मैं जाने कहा कहा भटकी हूँ
एक रोशिनी की तलाश मे
अब तो सिर्फ कुछ बूंदी ही
रह गए नैनो के खली ग्लास मे
इस तपती धूप मे जल्द ही
यह भी सूख जाये ना
डरती हूँ इस बात से की
कदम कही रूक जाये ना
जानती हूँ की मेरी रोशिनी
की तलाश अभी अधूरी है
पर क्या करूं यह भी
तो मेरी एक मज बूरी है
आज तक जिन्दगी से मैंने
कभी हार नही मानी
इसलिये आज यह मैंने
दिल मे है ठानी
की इस जिन्दगी को अपनी सांसे
छेन ने नही दूँगी
आज इस जिन्दगी का रुख ही
मैं मोड दूँगी
आज यह जिन्दगी खतम करके
सास ओं से पीछा चुरा रही हूँ
अर्ध्वेरम से यह शुरू हुई थी
आज इसमे पुर्न्वेरम लगा रही hoon .
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