Thursday, September 13, 2007

ज़ख्म

दिल की हालत है क्या यह किन लफ़्ज़ों मे करें हम बयां
की अरमानों की अर्थी उठी है आज किसी सजी डोली की तरह ..........................

सजाया तो गया है इसको भी फूलों से ही
क्यों लग रही है इनकी चुवन हमे काटों की तरह ..............

संभलना ऐ दुनिया वालो की जाते - जाते भी ना हम कहीँ ज़ख़्मी हो जाएँ
की और भी ज़ख्म अपने कंधे पे लिए जा रहें है हम किसी इलज़ाम की तरह ...................

अब एक और दाग ना सह सकेंगे हम अपने दमन मे
की जीं ना सके इस दुनिया मे हम बनके आम इंसानों की तरह ...............

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