Thursday, September 13, 2007

कभी कहा नही

कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

इश्क़ को अपने हमने आँखों मे छुपा कर रखा
पलकों की चादर से हमेशा उसे बचा कर रखा
निगाहों को भी ना उनसे गुफ्तगू करने दी
की हमने ........
कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

वो हमे अपना जिगरी दोस्त कहते थे हमेशा
अपनी हर बात वोह हमसे कहते थे हमेशा
पर अपनी ज़ुबां पर कभी आने ना दिया
की हमने ...............
कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

एक दिन ऐसा आया जब उनकी डोली को हमने विदा किया
करते और क्या भला हमने "जिगरी दोस्त" का फ़र्ज़ अदा किया
जिगर मे दर्द की एक हूक उठी थी हमारे
की तब भी हमने .............
कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

आज एक और ऐसा दिन जिन्दगी मे फिर आया है
कंधे पर उनका ही जनाज़ा हमने उठाया है
उनके आखरी ख़त को पढ़ कर अब जीं ना पिएंगे हम
की उन्होने भी लिखा था ...........
कभी कहा नही उनसे की मोहब्बत है
डरते थे की कही ना वो खफा हो जाये

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